MERCY OF GURU NANAK JI

एक बार गुरु नानक देव जी जगत का उद्धार करते हुए एक गाँव के बाहर पहुँचे; देखा वहाँ एक झोपड़ी बनी हुई थी! उस झोपड़ी में एक आदमी रहता था जिसे कुष्‍ठ-रोग था! गाँव के सारे लोग उससे नफरत करते; कोई उसके पास नहीं आता था! कभी किसी को दया आ जाती तो उसे खाने के लिये कुछ दे देते अन्यथा भूखा ही पड़ा रहता !
नानक देव जी उस कोढ़ी के पास गये और कहा - भाई हम आज रात तेरी झोपड़ी में रहना चाहते है अगर तुम्हे कोई परेशानी ना हो तो? कोढ़ी हैरान हो गया क्योंकि उसके तो पास भी कोई आना नहीं चाहता था फिर उसके घर में रहने के लिये कोई राजी कैसे हो गया ?
कोढ़ी अपने रोग से इतना दुखी था कि चाह कर भी कुछ ना बोल सका; सिर्फ नानक देव जी को देखता ही रहा! लगातार देखते-देखते ही उसके शरीर में कुछ बदलाव आने लगे पर कुछ कह नहीं पा रहा था !
नानक देव जी ने मरदाना को कहा - रबाब बजाओ! नानक देव जी ने उस झोपड़ी में बैठ कर कीर्तन करना आरम्भ कर दिया! कोढ़ी ध्यान से कीर्तन सुनता रहा! कीर्तन समाप्त होने पर कोढ़ी के हाथ जुड़ गये जो ठीक से हिलते भी नहीं थे! उसने नानक देव जी के चरणों में अपना माथा टेका !
नानक देव जी ने कहा - और भाई ठीक हो; यहाँ गाँव के बाहर झोपड़ी क्यों बनाई है? कोढ़ी ने कहा - मैं बहुत बदकिस्मत हूँ मुझे कुष्ठ रोग हो गया है! मुझसे कोई बात तक नहीं करता यहाँ तक कि मेरे घर वालो ने भी मुझे घर से निकाल दिया है! मैं नीच हूँ इसलिये कोई मेरे पास नहीं आता !
उसकी बात सुन कर नानक देव जी ने कहा - नीच तो वो लोग है जिन्होंने तुम जैसे रोगी पर दया नहीं की और अकेला छोड़ दिया !आ मेरे पास मैं भी तो देखूँ कहा है तुझे कोढ़? जैसे ही कोढ़ी नानक देव जी के नजदीक आया तो प्रभु की ऐसी कृपा हुई कि कोढ़ी बिल्कुल ठीक हो गया! यह देख वह नानक देव जी के चरणों में गिर गया !
गुरु नानक देव जी ने उसे उठाया और गले से लगा कर कहा - प्रभु का स्मरण करो और लोगों की सेवा करो; यही मनुष्य के जीवन का मुख्य कार्य है !
नानक जिन को सतगुरु मिल्या, तिन का लेखा निबड़ेया

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