God is incarnation of Lord shiva and blessed his Sangatji with great blessings and unlimited miracles with every sangat.
Millions of millions years have passed and human civilization comes into existence. Existence of God is eternal truth
Millions of millions years have passed and human civilization comes into existence. Existence of God is eternal truth
Difference between theist and atheist
People have difference of opinion about presence of God. We as human being always consider everything in physical form. But some natural materials are created in such a way that we cannot see like heat ,humidity, air. These natural things exist but not in physical form. We cannot control or keep such matters in our custody. The existence of god is same as we cannot see air but can feel every time. by chanting of mantras we feel the presence of God around us and gets encouragement for doing wish fulfilled. Hey you bring faith in God increases our power and stamina to do anything because every thinking of our mind will give us the right path of life. We must always thankful to God for what god has given us. Buying thanking God for his Mercy over us and are free from worries and hurries of life. Religion has come into existence due to some faith of a person in Supernatural powers like on the sun, the moon ,the universe, the stars. I have some opinion of different people about existence or presence of God. Undoubtedly there is existence of god even the person does believe in his presence or existence or not.
Divorce means ego and individualism
God has created marriages in the heaven and we are human beings and come together for living life forever. but after getting marriage the person has some ego to persuade other people for doing the activities according to his own will.
how can we leave a very normal and comfortable life after getting marriage this is very simple we must leave hour ago and to adjustment with our life partner. if we impose our orders and feelings over other people without knowing his or her will there will be cause of divorce. We must understand the feeling of others for it different reason because we must never forget that human feelings can meet the person kind generous and lovable person. We must never tease others by his colour ,caste Creed ,dynasty and many other matters of social life. We must make our nature adjustable with according to our life partner. Imposing our feelings and opinions over other people will make you Adamant in the eyes of other people. Why we call any person Adamant because he doesn't obey our orders as well as our instructions . In my opinion diverse is the reason of hatred between couples. When hydrate comes up to high level than the couple decides to be separated from each other for Good. by expressing your views before others we can reduce such matters forever. but why culture the people remain Adamant throughout their life and they never want to change their behaviour in anyway and such cases are increasing day by day because the adamancy are found in both partners of life.
Love is stronger than hatred
love is a stronger than hatred because we have some good feelings which encourages our Life and makes us good person in the eyes of other people. Being Human we have many kinds of feelings love and affection and unlimited jealous for different reasons. Jealous makes a person very weak and him or her for doing bad things. How can we save from hatred and jealous nature. We can engage ourself in very normal and good activities of the day and remain busy in such activities then we can forget hatred and jealous behaviour throughout our life. the person who does any work will be busy throughout the day and will never learn any such things and he will become very good by nature.
TIME CHANGES
एक साधु देश में यात्रा केलिए पैदल निकला । रात हो जाने पर एक गाँव में आनंद नाम के व्यक्ति के दरवाजे पर रुका ।आनंद ने फकीर की खूब सेवा की । दूसरे आनंदने बहुत सारे उपहार देकर विदा किया । फकीर ने आनंद के लिए पाथॅना की - "भगवान करे तू दिनों दिन बढ़ता ही रहे ।"
फकीर की बात सुनकर आनंद हँस पड़ा और बोला - "अरे, फकीर ! जो है यह भी नहीं रहने वाला ।" फकीर आनंद की ओर देखता रह गया और वहाँ से चला गया ।
दो वर्ष बाद फकीर फिर आनंद के घर गया और देखा कि सारा वैभव समाप्त हो गया है । पता चला कि आनंद अब बगल के गाँव में एक जमींदार के यहाँ नौकरी करता है । फकीर आनंद से मिलने गया । आनंदने अभाव में भी फकीर का स्वागत किया । झोंपड़ी में फटी चटाई पर बिठाया । खाने के लिए सूखी रोटी दी । दूसरे दिन जाते समय फकीर की आँखों में आँसू थे । फकीर कहने लगा - "हे भगवान् ! ये तूने क्या किया ?"
आनंद पुन: हँस पड़ा और बोला - "फकीर तू क्यों दु:खी हो रहा है ? महापुरुषों ने कहा है कि भगवान् इन्सान को जिस हाल में रखे, इन्सान को उसका धन्यवाद करके खुश रहना चाहिए । समय सदा बदलता रहता है और सुनो ! यह भी नहीं रहने वाला ।"
फकीर सोचने लगा - "मैं तो केवल भेष से फकीर हूँ । सच्चा फकीर तो तू ही है, आनंद।"
दो वर्ष बाद फकीर फिर यात्रा पर निकला और आनंद से मिला तो देखकर हैरान रह गया कि आनंद तो अब जमींदारों का जमींदार बन गया है । मालूम हुआ कि जिस जमींदार के यहाँ आनंद नौकरी करता था वह सन्तान विहीन था, मरते समय अपनी सारी जायदाद आनंद को दे गया । फकीर ने आनंद से कहा - "अच्छा हुआ, वो जमाना गुजर गया । भगवान् करे अब तू ऐसा ही बना रहे ।"
यह सुनकर आनंद फिर हँस पड़ा और कहने लगा - "फकीर ! अभी भी तेरी नादानी बनी हुई है ।"
फकीर ने पूछा - "क्या यह भी नहीं रहने वाला ?"
आनंद उत्तर दिया - "हाँ, या तो यह चला जाएगा या फिर इसको अपना मानने वाला ही चला जाएगा । कुछ भी रहने वाला नहीं है और अगर शाश्वत कुछ है तो वह है परमात्मा और उस परमात्मा का अंश आत्मा ।" आनंद की बात को फकीर ने गौर से सुना और चला गया ।
फकीर करीब डेढ़ साल बाद फिर लौटता है तो देखता है कि आनंद का महल तो है किन्तू कबूतर उसमें गुटरगूं कर रहे हैं, और आनंद का देहांत हो गया है। बेटियाँ अपने-अपने घर चली गयीं, बूढ़ी पत्नी कोने में पड़ी है ।
कह रहा है आसमां यह समा कुछ भी नहीं।
रो रही हैं शबनमें, नौरंगे जहाँ कुछ भी नहीं।
जिनके महलों में हजारों रंग के जलते थे फानूस।
झाड़ उनके कब्र पर, बाकी निशां कुछ भी नहीं।
फकीर कहता है - "अरे इन्सान ! तू किस बात का अभिमान करता है ? क्यों इतराता है ? यहाँ कुछ भी टिकने वाला नहीं है, दु:ख या सुख कुछ भी सदा नहीं रहता । तू सोचता है, पडोसी मुसीबत में है और मैं मौज में हूँ । लेकिन सुन, न मौज रहेगी और न ही मुसीबत । सदा तो उसको जानने वाला ही रहेगा । सच्चे इन्सान वे हैं, जो हर हाल में खुश रहते हैं । मिल गया माल तो उस माल में खुश रहते है और हो गये बेहाल तो उस हाल में खुश रहते हैं ।
फकीर कहने लगा - "धन्य है, आनंद ! तेरा सत्संग और धन्य है तुम्हारे सद्गुरु ! मैं तो झूठा फकीर हूँ, असली फकीरी तो तेरी जिन्दगी है । अब मैं तेरी तसवीर देखना चाहता हूँ, कुछ फूल चढ़ाकर दुआ तो मांग लूं ।"
फकीर दुसरे कमरे मे जाता है तो देखता है कि आनंद ने अपनी तस्वीर पर लिखवा रखा है - "आखिर में यह भी नहीं रहेगा।"
LOVE IS EXCEPTIONAL
शर्तों से परे होता है प्रेम
एक दिन फकीर के घर रात चोर घुसे। घर में कुछ भी न था।
सिर्फ एक कंबल था, जो फकीर ओढ़े लेटा हुआ था।
सर्द रात, फकीर रोने लगा, क्योंकि घर में चोर आएं और चुराने को कुछ नहीं है, इस पीड़ा से रोने लगा।
उसकी सिसकियां सुन कर चोरों ने पूछा कि भई क्यों रोते हो?
फकीर बोला कि आप आए थे - जीवन में पहली दफा,
यह सौभाग्य तुमने दिया! मुझ फकीर को भी यह मौका दिया!
लोग फकीरों के यहां चोरी करने नहीं जाते, सम्राटों के यहां जाते हैं।
तुम चोरी करने क्या आए, तुमने मुझे सम्राट बना दिया।
ऐसा सौभाग्य! लेकिन फिर मेरी आंखें आंसुओ से भर गई हैं,
सिसकियां निकल गईं,
क्योंकि घर में कुछ है नहीं।
तुम अगर जरा दो दिन पहले खबर कर देते तो मैं इंतजाम कर रखता
दो—चार दिन का समय होता तो कुछ न कुछ मांग—तूंग कर इकट्ठा कर लेता।
अभी तो यह कंबल भर है मेरे पास, यह तुम ले जाओ। और देखो इनकार मत करना। इनकार करोगे तो मेरे हृदय को बड़ी चोट पहुंचेगी।
चोर घबरा गए, उनकी कुछ समझ में नहीं आया। ऐसा आदमी उन्हें कभी मिला नहीं था।
चोरी तो जिंदगी भर की थी,
मगर ऐसे आदमी से पहली बार मिलना हुआ था।
भीड़— भाड़ बहुत है, आदमी कहां?
शक्लें हैं आदमी की, आदमी कहां?
पहली बार उनकी आंखों में शर्म आई, और पहली बार किसी के सामने नतमस्तक हुए।
मना करके इसे क्या दुख देना, कंबल तो ले लिया। लेना भी मुश्किल! क्योंकि इस के पास कुछ और है भी नहीं,
कंबल लिया तो पता चला कि फकीर नंगा है। कंबल ही ओढ़े हुए था, वही एकमात्र वस्त्र था— वही ओढ़नी, वही बिछौना।
लेकिन फकीर ने कहा. तुम मेरी फिकर मत करो, मुझे नंगे रहने की आदत है। फिर तुम आए, सर्द रात, कौन घर से निकलता है। कुत्ते भी दुबके पड़े हैं।
तुम चुपचाप ले जाओ और दुबारा जब आओ मुझे खबर कर देना।
चोर तो ऐसे घबरा गए और एकदम निकल कर झोपड़ी से बाहर हो गए।
जब बाहर हो रहे थे तब फकीर चिल्लाया कि सुनो, कम से कम दरवाजा बंद करो और मुझे धन्यवाद दो।
आदमी अजीब है, चोरों ने सोचा।
कुछ ऐसी कड़कदार उसकी आवाज थी कि उन्होंने उसे धन्यवाद दिया, दरवाजा बंद किया और भागे।
फकीर खिड़की पर खड़े होकर दूर जाते उन चोरों को देखता रहा।
कोई व्यक्ति नहीं है ईश्वर जैसा, लेकिन सभी व्यक्तियों के भीतर जो धड़क रहा है, जो प्राणों का मंदिर बनाए हुए विराजमान है, जो श्वासें ले रहा है, वही तो ईश्वर है।
कुछ समय बाद वो चोर पकड़े गए। अदालत में मुकदमा चला,
वह कंबल भी पकड़ा गया। और वह कंबल तो जाना—माना कंबल था।
वह उस प्रसिद्ध फकीर का कंबल था।
जज तत्क्षण पहचान गया कि यह उस फकीर का कंबल है।
तो तुमने उस फकीर के यहां से भी चोरी की है?
फकीर को बुलाया गया। और जज ने कहा कि अगर फकीर ने कह दिया कि यह कंबल मेरा है और तुमने चुराया है,
तो फिर हमें और किसी प्रमाण की जरूरत नहीं है।
उस आदमी का एक वक्तव्य, हजार आदमियों के वक्तव्यों से बड़ा है।
फिर जितनी सख्त सजा मैं तुम्हें दे सकता हूं दूंगा।
चोर तो घबरा रहे थे, काँप रहे थे
जब फकीर अदालत में आया।
और फकीर ने आकर जज से कहा कि नहीं, ये लोग चोर नहीं हैं, ये बड़े भले लोग हैं।
मैंने कंबल भेंट किया था और इन्होंने मुझे धन्यवाद दिया था।
और जब धन्यवाद दे दिया,
बात खत्म हो गई।
मैंने कंबल दिया, इन्होंने धन्यवाद दिया। इतना ही नहीं,
ये इतने भले लोग हैं कि जब बाहर निकले तो दरवाजा भी बंद कर गए थे।
जज ने तो चोरों को छोड़ दिया, क्योंकि फकीर ने कहा. इन्हें मत सताओ, ये प्यारे लोग हैं, अच्छे लोग हैं, भले लोग हैं।
चोर फकीर के पैरों पर गिर पड़े और उन्होंने कहा हमें दीक्षित करो।
वे संन्यस्त हुए।
और फकीर बाद में खूब हंसा।
और उसने कहा कि तुम संन्यास में प्रवेश कर सको इसलिए तो कंबल भेंट दिया था।
इसे तुम पचा थोड़े ही सकते थे। इस कंबल में मेरी सारी प्रार्थनाएं बुनी थी।
झीनी—झीनी बीनी रे चदरिया
उस फकीर ने कहा प्रार्थनाओं से बुना था इसे।
इसी को ओढ़ कर ध्यान किया था। इसमें मेरी समाधि का रंग था,
गंध थी। तुम इससे बच नहीं सकते थे।
यह मुझे पक्का भरोसा था, कंबल ले ही आएगा तुमको
उस दिन चोर की तरह आए थे
आज शिष्य की तरह आए।
मुझे भरोसा था।
क्योंकि बुरा कोई आदमी है ही नहीं।
Love and affection is priceless
एक आइसक्रीम वाला रोज एक मोहल्ले में आइसक्रीम बेचने जाया करता था | उस कालोनी में सारे पैसे वाले लोग रहा करते थे लेकिन वहां एक परिवार ऐसा भी था जो आर्थिक तंगी से गुजर रहा था | उनका एक चार साल का बेटा था जो हर दिन खिड़की से उस आइसक्रीम वाले को ललचाई नज़रों से देखा करता था | आइसक्रीम वाला भी उसे पहचानने लगा था लेकिन वो लड़का कभी घर से बाहर आइसक्रीम खाने नहीं आया |
एक दिन उस आइसक्रीम वाले का मन नहीं माना तो वो खिड़की के पास जाकर उस बच्चे से बोला बेटा क्या आपको आइसक्रीम अच्छी नहीं लगती, आप कभी मेरी आइसक्रीम नहीं खरीदते? उस चार साल के बच्चे ने बड़ी मासूमियत के साथ कहा कि मुझे आइसक्रीम तो बहुत पसंद हे पर माँ के पास पैसे नहीं हैं | आइसक्रीम वाले को यह सुनकर उस बच्चे पर बड़ा प्यार आया | उसने कहा, बेटा तुम मुझसे रोज आइसक्रीम ले लिया करो, मुझे तुमसे पैसे नहीं चाहिए..*
वो बच्चा बहुत समझदार निकला और बहुत सहज भाव से बोला कि नहीं ले सकता | माँ ने कहा हे किसी से मुफ्त में कुछ लेना गन्दी बात होती है इसलिए मैं कुछ दिए बिना आइसक्रीम नहीं ले सकता, वो आइसक्रीम वाला बच्चे की इतनी गहरी बात सुनकर आश्चर्यचकित रह गया | फिर उसने कहा कि “तुम मुझे आइसक्रीम के बदले में रोज एक झप्फ़ी (HUG) दे दिया करो | इस तरह मुझे आइसक्रीम की कीमत मिल जाया करेगी !” बच्चा ये सुनकर बहुत खुश हुआ वो दौड़कर घर से बाहर आया |
आइसक्रीम वाले ने उसे एक आइसक्रीम दी और बदले में उस बच्चे ने उस आइसक्रीम वाले को एक झप्फ़ी (HUG) दी और खुश होकर घर के अन्दर भाग गया |अब तो रोज का यही सिलसिला हो गया, वो आइसक्रीम वाला रोज आता और एक झप्फ़ी (HUG) के बदले उस बच्चे को आइसक्रीम दे जाता | करीब एक महीने तक यही चलता रहा लेकिन उसके बाद उस बच्चे ने अचानक से आना बंद कर दिया, अब वो खिड़की पर भी नजर नहीं आता था।
जब कुछ दिन हो गए तो आइसक्रीम वाले का मन नहीं माना और वो उस घर पर पहुँच गया | दरवाजा उस बालक की माँ ने खोला | आइसक्रीम वाले ने उत्सुकता से उस बच्चे के बारे में पूछा तो उसकी माँ ने कहा “देखिये भाई साहब हम गरीब लोग हैं, हमारे पास इतना पैसा नहीं है जो अपने बच्चे को रोज आइसक्रीम खिला सकें | आप उसे रोज मुफ्त में आइसक्रीम खिलाते रहे, जिस दिन मुझे ये बात पता चली तो मुझे बहुत शर्मिंदगी हुई |
आप एक अच्छे इंसान हैं लेकिन मैं अपने बेटे को मुफ्त में आइसक्रीम खाने नहीं दे सकती”| बच्चे की माँ की बाते सुनकर उस आइसक्रीम वाले ने जो उत्तर दिया वो आप सब के लिए सोचने का कारण बन सकता हैं, वो बोला “बहनजी ! कौन कहता हैं कि मैं उसे मुफ्त में आइसक्रीम खिलाता था| मैं इतना दयालु या उपकार करने वाला नहीं हूँ |
मैं व्यापार करता हूँ और आपके बेटे से जो मुझे मिला वो उस आइसक्रीम की कीमत से कहीं अधिक मूल्यवान था और कम मूल्य की वस्तु का अधिक मूल्य वसूल करना ही व्यापार है | एक बच्चे का निश्छल प्रेम पा लेना सोने चांदी के सिक्के पा लेने से कहीं अधिक मूल्यवान है, आपने अपने बेटे को बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं लेकिन मैं आपसे पूछता हूँ, क्या प्रेम का कोई मूल्य नहीं होता?
उस आइसक्रीम वाले के अर्थ पूर्ण शब्द सुनकर बालक की माँ की आँखे भीग गयी | उन्होंने बालक को पुकारा तो वो दौड़कर आ गया, माँ का इशारा पाते ही बालक दौड़कर आइसक्रीम वाले से लिपट गया | आइसक्रीम वाले ने बालक को गोद में उठा लिया और बाहर जाते हुए कहने लगा “तुम्हारे लिए आज चाकलेट आइसक्रीम लाया हूँ !! तुझे बहुत पसंद है न?” बच्चा उत्साह से बोला “हां बहुत !!!” बालक की माँ ख़ुशी से रोने लगी..*
ऐसा ही प्यार का एहसास हमारे साथ हमारे मालीक (परमात्मा) का है, हम तो इतने गरीब हैं कि सत्संग , सेवा, सिमरन के लिए समय नहीं निकल पाते, बस कभी कभी उस मालिक को याद कर लेते हैं और अपना फ़र्ज़ निभा आते हैं, वो तो उस मालिक की दया है और मालिक जी इतने दयालु हैं, हमारी हर तरह से संभाल करते हैं, हमारा परमार्थ भी सवांरते हैं और स्वार्थ भी।
Relationship is unique
सेठ घनश्याम के दो पुत्रों में जायदाद और ज़मीन का बँटवारा चल रहा था और एक चार पट्टी के कमरे को लेकर विवाद गहराता जा रहा था।
एक दिन दोनो भाई मरने मारने पर उतारू हो चले तो पिता जी बहुत जोर से हँसे।
पिताजी को हँसता देखकर दोनो भाई लड़ाई को भूल गये, और पिताजी से हँसी का कारण पुछा।
तो पिताजी ने कहा-- इस छोटे से ज़मीन के टुकडे के लिये इतना लड़ रहे हो छोड़ो इसे आओ मेरे साथ एक अनमोल खजाना बताता हूँ मैं तुम्हे !
पिता जी और दोनो पुत्र पवन और मदन उनके साथ रवाना हुये पिता जी ने कहा देखो यदि तुम आपस मे लड़े तो फिर मैं तुम्हे उस खजाने तक नही लेकर जाऊँगा और बीच रास्ते से ही लौटकर आ जाऊँगा...
अब दोनो पुत्रों ने खजाने के चक्कर मे एक समझौता किया की चाहे कुछ भी हो जाये पर हम लड़ेंगे नही प्रेम से यात्रा पे चलेंगे !
गाँव जाने के लिये एक बस मिली पर सीट दो की मिली, और वो तीन थे, अब पिताजी के साथ थोड़ी देर पवन बैठे तो थोड़ी देर मदन ऐसे चलते-चलते लगभग दस घण्टे का सफर तय किया फिर गाँव आया।
घनश्याम दोनो पुत्रों को लेकर एक बहुत बड़ी हवेली पर गये हवेली चारों तरफ से सुनसान थी।
घनश्याम ने जब देखा की हवेली मे जगह जगह कबूतरों ने अपना घोसला बना रखा है, तो घनश्याम वहीं पर बैठकर रोने लगे।
दोनो पुत्रों ने पुछा क्या हुआ पिता जी आप रो क्यों रहे है ?
तो रोते हुये उस वृद्ध पिता ने कहा जरा ध्यान से देखो इस घर को, जरा याद करो वो बचपन जो तुमने यहाँ बिताया था।
तुम्हे याद है पुत्र इस हवेली के लिये मैं ने अपने भाई से बहुत लड़ाई की थी, सो ये हवेली तो मुझे मिल गई पर मैंने उस भाई को हमेशा के लिये खो दिया ,
क्योंकि वो दूर देश में जाकर बस गया और फिर वक्त्त बदला और एक दिन हमें भी ये हवेली छोड़कर जाना पड़ा !
अच्छा तुम ये बताओ बेटा की बस की जिस सीट पर हम बैठकर आये थे, क्या वो बस की सीट हमें मिल जायेगी ?
और यदि मिल भी जाये तो क्या वो सीट हमेशा-हमेशा के लिये हमारी हो सकती है ? मतलब की उस सीट पर हमारे सिवा कोई न बैठे।
तो दोनो पुत्रों ने एक साथ कहा की ऐसे कैसे हो सकता है , बस की यात्रा तो चलती रहती है और उस सीट पर सवारियाँ बदलती रहती है।
पहले कोई और बैठा था , आज कोई और बैठा होगा और पता नही कल कोई और बैठेगा। और वैसे भी उस सीट में क्या धरा है जो थोड़ी सी देर के लिये हमारी है !
पिताजी फिर हँसे फिर रोये और फिर वो बोले देखो यही तो मैं तुम्हे समझा रहा हूँ ,कि जो थोड़ी देर के लिये तुम्हारा है , तुमसे पहले उसका मालिक कोई और था बस थोड़ी सी देर के लिये तुम हो और थोड़ी देर बाद कोई और हो जायेगा।
बस बेटा एक बात ध्यान रखना की इस थोड़ी सी देर के लिये कही अनमोल रिश्तों की आहुति न दे देना,
यदि कोई प्रलोभन आये तो इस घर की इस स्थिति को देख लेना की अच्छे अच्छे महलों में भी एक दिन कबूतर अपना घोसला बना लेते है।
बस बेटा मुझे यही कहना था --कि बस की उस सीट को याद कर लेना जिसकी रोज उसकी सवारियां बदलती रहती है
उस सीट के खातिर अनमोल रिश्तों की आहुति न दे देना जिस तरह से बस की यात्रा में तालमेल बिठाया था बस वैसे ही जीवन की यात्रा मे भी तालमेल बिठा लेना !
दोनो पुत्र पिताजी का अभिप्राय समझ गये, और पिता के चरणों में गिरकर रोने लगे !
जो कुछ भी ऐश्वर्य - सम्पदा हमारे पास है वो सबकुछ बस थोड़ी देर के लिये ही है ।थोड़ी-थोड़ी देर मे यात्री भी बदल जाते है और मालिक भी।
रिश्तें बड़े अनमोल होते है छोटे से ऐश्वर्य या सम्पदा के चक्कर मे कहीं किसी अनमोल रिश्तें को न खो देना...
Good company removes darkness of mind
एक संत रोज अपने शिष्यों को गीता पढ़ाते थे। सभी शिष्य इससे खुश थे। लेकिन एक शिष्य चिंतित दिखा। संत ने उससे इसका कारण पूछा। शिष्य ने कहा- गुरुदेव, मुझे आप जो कुछ पढ़ाते हैं, वह समझ में नहीं आता। जबकि बाकी सारे लोग समझ लेते हैं। मैं इसी वजह से चिंतित और दुखी हूं। आखिर मुझे गीता का भाष्य क्यों समझ में नहीं आता? गुरु ने कहा- तुम कोयला ढोने वाली टोकरी में जल भर कर ले आओ। शिष्य चकित हुआ। आखिर टोकरी में कैसे जल भरेगा? लेकिन चूंकि गुरु ने यह आदेश दिया था, इसलिए वह टोकरी में नदी का जल भरा और दौड़ पड़ा। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। जल टोकरी से छन कर गिर पड़ा। उसने टोकरी में जल भर कर कई बार गुरु जी तक दौड़ लगाई। लेकिन टोकरी में जल टिकता ही नहीं था। तब वह अपने गुरुदेव के पास गया और बोला- गुरुदेव, टोकरी में पानी ले आना संभव नहीं। कोई फायदा नहीं। गुरु बोले- फायदा है। तुम जरा टोकरी में देखो। शिष्य ने देखा- बार- बार पानी में कोयले की टोकरी डुबाने से स्वच्छ हो गई है। उसका कालापन धुल गया है। गुरु ने कहा- ठीक जैसे कोयले की टोकरी स्वच्छ हो गई और तुम्हें पता भी नहीं चला। उसी तरह satsang बार- बार सुनने से खूब फायदा होता है। भले ही अभी तुम्हारी समझ में नहीं आ रहा है। लेकिन तुम इसका फायदा बाद में महसूस करोगे।
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Good nurturing and affection
एक पिता-पुत्र व्यापार धंधा करते थे। पुत्र को पिता के साथ कार्य करते हुए वर्षों बीत गये, उसकी उम्र भी चालीस को छूने लगी। फिर भी पुत्र को पिता न तो व्यापार की स्वतन्त्रता देते थे और न ही तिजोरी की चाबी। पुत्र के मन में सदैव यह बात खटकती। वह सोचता, "यदि पिता जी का यही व्यवहार रहा तो मुझे व्यापार में कुछ नया करने का कोई अवसर नहीं मिलेगा
पुत्र के मन में छुपा क्षोभ एक दिन फूट पड़ा। दोनों के बीच झगड़ा हुआ और सम्पदा का बँटवारा हो गया। पिता पुत्र दोनों अलग हो गये। पुत्र अपनी पत्नी, बच्चों के साथ रहने लगा। पिता अकेले थे, उनकी पत्नी का देहांत हो चुका था। उन्होंने किसी दूसरे को सेवा के लिए नहीं रखा क्योंकि उन्हें किसी पर विश्वास नहीं था। वे स्वयं ही रूखा-सूखा भोजन बनाकर खा लेते या कभी चने आदि खाकर ही रह जाते तो कभी भूखे ही सो जाते थे।उनकी पुत्रवधु बचपन से ही सत्संगी थी। जब उसे अपने ससुर की ऐसी हालत का पता चला तो उसे बड़ा दुःख हुआ, आत्मग्लानि भी हुई। उसमें बाल्यकाल से ही धर्म के संस्कार थे, बड़ों के प्रति आदर व सेवा का भाव था। उसने अपने पति को मनाने का प्रयास किया परंतु वे न माने। पिता के प्रति पुत्र के मन में सदभाव नहीं था। अब पुत्रवधु ने एक विचार अपने मन में दृढ़ कर उसे कार्यान्वित किया। वह पहले पति व पुत्र को भोजन कराकर क्रमशः दुकान और विद्यालय भेज देती, बाद में स्वयं ससुर के घर जाती।भोजन बनाकर उन्हें खिलाती और रात्रि के लिए भी भोजन बनाकर रख देती। कुछ दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। जब उसके पति को पता चला तो उसने पत्नी को ऐसा करने से रोकते हुए कहाः "ऐसा क्यों करती हो ? बीमार पड़ जाओगी। तुम्हारा शरीर इतना परिश्रम नहीं सह पायेगा।" पत्नी बोली "मेरे आदरणीय ससुरजी भूखे रहें तकलीफ पायें और हम लोग आराम से खायें-पियें, यह मैं नहीं देख सकती
मेरा धर्म है बड़ों की सेवा करना, इसके बिना मुझे संतोष नहीं होता। उनमें भी तो मेरे भगवान का वास है। मैं उन्हें खिलाये बिना नहीं खा सकती। भोजन के समय उनकी याद आने पर मेरी आँखों में आँसू आ जाते हैं। उन्होंने ही तो आपको पाल-पोसकर बड़ा किया है, तभी आप मुझे पति के रूप में मिले हैं। आपके मन में कृतज्ञता का भाव नहीं है तो क्या हुआ, मैं उनके प्रति कैसे कृतघ्न कैसे हो सकती हूँ।पत्नी के सुंदर संस्कारों ने, सदभाव ने पति की बुद्धि पलट दी। उन्होंने जाकर अपने पिता के चरण छुए, क्षमा माँगी और उन्हें अपने घर ले आये। पति पत्नी दोनों मिलकर पिता की सेवा करने लगे। पिता ने व्यापार का सारा भार पुत्र पर छोड़ दिया। परिवार के किसी भी व्यक्ति में सच्चा सदभाव है, मानवीय संवेदनाएँ हैं, सुसंस्कार हैं तो वह सबके मन को जोड़ सकता है, घर-परिवार में सुख शांति बनी रह सकती है। और यह तभी सम्भव है जब जीवन में सत्संग हो, भारतीय संस्कृति के उच्च संस्कार हों, धर्म का सेवन हो
जीवन का ऐसा कौन-सा क्षेत्र है जहाँ सत्संग की आवश्कता नहीं है ! सत्संग जीवन की अत्यावश्यक माँग है क्योंकि सच्चा सुख जीवन की माँग है और वह सत्संग से ही मिल सकता है।