Real Pleasure of Darshan

बनतो को बिगड़ते देखा है, बिगड़ो को भी बनते देखा है ।
जो खूब अकड़ के चलते थे उन्हें मिट्टी में मिलते देखा है ।।
तमन्ना अगर है तुझे आनन्द की, तो फिर फिकरत कर फकीरों  की ।
नहीं वो लाल मिलता है अमीरों के खजाने में ।।

महाराज श्री ने कहा कि जिस सुख की तलाश में यह दुनिया है मेरे प्यारे वह सुख बड़े महलों में नहीं मिलता बल्कि किसी की सेवा में मिलता है, फकीरों की सेवा में मिलता है। सुख वो नहीं है जो आलिशान महलों में मिलता है बल्कि सुख वो है जो यहां जमीन में बैठे हुए आनन्द ले रहे हो।
महाराज जी ने कहा है कि अगर इस भवसागर से पार होना चाहते हो तो अपने जीवन में भगवत नाम की शरण ग्रहण कर लेनी चाहिए।

महाराज श्री ने कथा के प्रसंग का वृतांत सुनाते हुए बताया कि महाबली ने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी जिसके फलस्वरूप भगवान ब्रह्मा ने प्रकट होकर वरदान मांगने को कहा। बाली भगवान ब्रह्मा के आगे नतमस्तक होकर बोला “प्रभु, मै इस संसार को दिखाना चाहता हँप कि असुर अच्छे भी होते हैं। मुझे इंद्र के बराबर शक्ति चाहिए और मुझे युद्ध में कोई पराजित ना कर सके।" भगवान ब्रह्मा ने इन शक्तियों के लिए उसे उपयुक्त मानकर बिना प्रश्न किये उसे वरदान दे दिया।
शुक्राचार्य एक अच्छे गुरु और रणनीतिकार थे जिनकी मदद से बाली ने तीनो लोकों पर विजय प्राप्त कर ली। बाली ने इंद्रदेव को पराजित कर इंद्रलोक पर कब्जा कर लिया। एक दिन गुरु शुक्राचार्य ने बाली से कहा अगर तुम सदैव के लिए तीनो लोकों के स्वामी रहना चाहते हो तो तुम्हारे जैसे राजा को अश्वमेध यज्ञ अवश्य करना चाहिए।
बाली अपने गुरु की आज्ञा मानते हुए यज्ञ की तैयारी में लग गया। बाली एक उदार राजा था जिसे सारी प्रजा पसंद करती थी। इंद्र को ऐसा महसूस होने लगा कि बाली अगर ऐसे ही प्रजापालक रहेगा तो शीघ्र सारे देवता भी बाली की तरफ हो जायेंगे।
इंद्रदेव देवमाता अदिति के पास सहायता के लिए गए और उन्हें सारी बात बताई। देवमाता ने बिष्णु भगवान से वरदान माँगा कि वे उनके पुत्र के रूप में धरती पर जन्म लेकर बाली का विनाश करें। जल्द ही अदिति और ऋषि कश्यप के यहाँ एक सुंदर बौने पुत्र ने जन्म लिया। पांच वर्ष का होते ही वामन का जनेऊ समारोह आयोजित कर उसे गुरुकुल भेज दिया।
इस दौरान महाबली ने 100 में से 99 अश्वमेध यज्ञ पुरे कर लिए थे। अंतिम अश्वमेध यज्ञ समाप्त होने ही वाला था कि तभी दरबार में दिव्य बालक वामन पहुँच गया।
महाबली ने कहा कि आज वो किसी भी व्यक्ति को कोई भी दक्षिणा दे सकता है। तभी गुरु शुक्राचार्य महाबली को महल के भीतर ले गये और उसे बताया कि ये बालक ओर कोई नहीं स्वयं भगवान विष्णु हैं वो इंद्रदेव के कहने पर यहाँ आए हैं और अगर तुमने इन्हें जो भी मांगने को कहा तो तुम सब कुछ खो दोगे।

महाबली अपनी बात पर अटल रहे और कहा मुझे वैभव खोने का भय नहीं है बल्कि अपन प्रभु को खोने का है इसलिए मै उनकी इच्छा पूरी करूंगा।
महाबली उस बालक के पास गया और स्नेह से कहा “आप अपनी इच्छा बताइये”।
उस बालक ने महाबली की और शांत स्वभाव से देखा और कहा “मुझे केवल तीन पग जमीन चाहिए जिसे मैं अपने पैरों से नाप सकूं”।
महाबली ने हँसते हुए कहा “केवल तीन पग जमीन चाहिए, मैं तुमको दूँगा।"
जैसे ही महाबली ने अपने मुँह से ये शब्द निकाले वामन का आकार धीरे धीरे बढ़ता गया। वो बालक इतना बढ़ा हो गया कि बाली केवल उसके पैरों को देख सकता था। वामन आकार में इतना बढ़ा था कि धरती को उसने अपने एक पग में माप लिया।
दुसरे पग में उस दिव्य बालक ने पूरा आकाश नाप लिया। अब उस बालक ने महाबली को बुलाया और कहा मैंने अपने दो पगों में धरती और आकाश को नाप लिया है। अब मुझे अपना तीसरा कदम रखने के लिए कोई जगह नहीं बची, तुम बताओ मैं अपना तीसरा कदम कहाँ रखूँ।
महाबली ने उस बालक से कहा “प्रभु, मैं वचन तोड़ने वालों में से नहीं हूँ आप तीसरा कदम मेरे शीश पर रखिये।"
भगवान विष्णु ने भी मुस्कुराते हुए अपना तीसरा कदम महाबली के सिर पर रख दिया। वामन के तीसरे कदम की शक्ति से महाबली पाताल लोक में चला गया। अब महाबली का तीनो लोकों से वैभव समाप्त हो गया और सदैव पाताल लोक में रह गया। इंद्रदेव और अन्य देवताओं ने भगवान विष्णु के इस अवतार की प्रशंशा की और अपना साम्राज्य दिलाने के लिए धन्यवाद दिया।
इसके बाद पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में सभी भक्तों ने श्री कृष्ण जन्मोत्सव को बड़ी धूमधाम से मनाया।
।। राधे-राधे बोलना पड़ेगा ।।

Story of Restlessness and Sleep

*विरह व्यथा*
  
    *एक दिन वृंदावन की बाज़ार मैं खडी होके एक सखी कुछ बेच रही है, लोग आते हैं पूछते हैं और हँस कर चले जाते हैं।  वह चिल्ला चिल्ला कर कह रही है कोई तो खरीद लो। पर वो सखी बेच क्या रही है ?? अरे ? यह क्या ? ये तो नींद बेच रही है।*
  *आखिर नींद कैसे बिक सकती है.? कोई दवा थोडी है। जो कोई भी नींद खरीद ले। सुबह से शाम होने को आई कोई ग्राहक ना मिला। सखी की आस बाकी है कोई तो ग्राहक मिलेगा शाम तक दूर कुछ महिलाऐं बातें करती गाँव मैं जा रहीं हैं वो उस सखी का ही उपहास कर रही है। अरे एक पगली आज सुबह से नींद बेच रही है। भला नींद कोई कैसे बेचेगा। पगला गई है वो ना जाने कौन गाँव की है। पीछे पीछे एक दूसरी सखी बेमन से गाय दुह कर आ रही है। वह ध्यान से उनकी बात सुन रही है। बात पूरी हुई तो सखी ने उन महिलाओ से पूछा कौन छोर पे बेच रही है नींद, पता पाकर दूध वहीं छोड़ उल्टे कदम भाग पडी। अँधेरा सा घिर आया है. पर पगली सी नंगे पैर भागे जा रही है. बाजार पहुंच कर पहली सखी से जा मिली और बोल पडी. अरी सखी ये नींद मुझे दे दे। इसके बदले चाहे तू कुछ भी ले ले पर ये नींद तू मुझे दे दे, मैं तुझसे मोल पूछती ही नही तू कुछ भी मोल लगा पर ये नींद मुझे ही दे दे।*
*अब बात बन रही है, सुबह से खडी सखी को ग्राहक मिल गया है और दूसरी सखी को नींद मिल रही है. अब बात बन भी गई.*
*अब पहली सखी ने पूछा सखी मुझे सुबह से शाम हो गई. लोग मुझे पागल बता के जा रहे हैं तू एक ऐसी भागी आई मेरी नींद खरीदने, ऐसा क्या हुआ ? दूसरी सखी बोली सखी यही मैं तुझसे पूछना चाहती हूँ ऐसा क्या हुआ जो तू नींद बेच रही है।*
*पहली सखी बोली, सखी क्या बताऊं, उसकी याद मैं पल पल भारी है मैने उससे एक बार दर्शन देने को कहा और वो प्यारा श्यामसुंदर राज़ी भी हो गया। उसने दिन भी बताया के मैं अमुक ठिकाने मिलने आऊँगा। पर हाय रे मेरी किस्मत जब से उसने कहा के मैं मिलने आऊगा तब से नींद उड़ गई पर हाय कल ही उसे आना था पर कल ही आँख लग गई। और वो प्यारा आकर चला भी गया। हाय रे मेरी फूटी किस्मत। तभी मैने पक्का किया के इस बैरन, सौतन निन्दिया को बेच कर रहूँगी। मेरे साजन से ना मिलने दिया। अब इसे बेच कर रहूँगी।*
*अब तू बता कि तू इसे खरीदना क्यों चाहती है ?*
*क्या बताऊ सखी, एक नींद मैं ही तो वो प्यारा मुझसे मिलता है. दिन भर काम मैं सास ससुर। घर के काम मैं फ़ुर्सत कहाँ के वो प्यारा श्यामसुंदर  मुझसे मिलने आये. वो केवल ख्वाब मैं ही मिलता था. मैने उससे कहा अब कब मुझे अपने साथ ले चलेगा ? उसने कहा अमुक दिन ले चलूँगा पर उसी दिन से नींद ही उड़ गई। सौतन अंखिया छोड़कर ही भाग गई. अब कहाँ से मिले वो प्यारा ??  हाय कितने ही जतन किये पर ये लौट कर ना आई। अब सखी तू ये नींद मुझे दे दे जिस से मुझे वो प्यारा मिल जाये। पहली सखी बोली. ले जा इस बैरन, सौतन को ताकि मैं सो न सकूँ. और वो प्यारा मुझे मिल सके।*

*भाव देखिये दोनों का भाव एक ही है पर तरीका अलग है*
*बोलिए वृंदावन बिहारी लाल की जय*

GURU NANAK JI

एक बार श्री गुरु नानक देव जी घोड़े पर बैठे कहीं से करतारपुर को लौट रहे थे।

भाई लहणा जी, पुत्र बाबा श्री चन्द जी, बाबा लखमीचन्द जी और साधसंगत संग चल रही थी।

रास्ते में कीचड़ से भरा एक गन्दा नाला आया।

श्री गुरु नानक जी के पास एक कटोरा था।
उन्होंने वो कटोरा पुल पार करते समय उस गन्दे नाले में फेंक दिया,
और सबको ऐसा प्रतीत हुआ जैसे ये कटोरा गुरु जी के हाथ से छिटक कर गन्दे नाले में जा गिरा है।

श्री गुरु नानक देव जी ने हुक्म किया- कोई भाई जाकर के ये कटोरा इस नाले से निकाल लाओ।

कोई आगे नही बढ़ा।
श्री गुरु नानक देव जी ने अपने पुत्र बाबा श्री चन्द जी को कटोरा निकालने को कहा।

बाबा श्री चन्द जी ने उत्तर दिया- पिता जी! आप जैसे दिव्यात्मा को कटोरे से इतना मोह नहीं करना चाहिए।
आप चाहें तो आपको नया कटोरा ले देते हैं।

बाबा लखमी चन्द जी के भी यही विचार थे।

एक साधारण से कटोरे की खातिर एक गंद से भरे नाले में कूदना सबको बेवकूफी लग रही थी।

लेकिन वो कटोरा मुझे अतिप्रिय है।
इतना कह कर श्री गुरु नानक देव जी ने भाई लहणा जी की तरफ देखा।

मेरे गुरु को अतिप्रिय।
बस इतना सुना और अगले ही पल भाई लहणा जी उस कीचड़ से भरे गंदे नाले में कूद चुके थे,
और श्री गुरु नानक देव जी का प्रिय कटोरा ढूंढ़ रहे थे।

कुछ देर के बाद भाई लहणा जी को वो कटोरा मिल गया।
कटोरे को अच्छी तरह मांज-धो कर और साफ करके गुरु जी के चरणों में पेश किया।

श्री गुरु नानक देव जी ने पूछा- भाई लहणे! जब कोई इस कीचड़ में उतरने को तैयार नहीं था,
तो तूँ क्यों कूदा?

भाई लहणा जी ने हाथ जोड़ कर कहा- दाता! मैं सिर्फ इतना जानता हूँ,
मेरा गुरु नानक जिससे प्रेम करता है,
उसको कभी पापों से भरे कीचड़ में फंसा नहीं रहने देता।
वो अपनी कुदरत को हुक्म देकर,
उस प्रिय को उस नरक से निकालकर,
उसे अपने लायक बनाकर,
उसे अंगीकार करता है।
दाता! मैंने कुछ नही किया।
जो कुछ करवाया है वो तो आपने ही करवाया है।

ऐसे विचार सुन श्री गुरु नानक देव जी ने भाई लहणा जी को अपने हृदय से लगा लिया,
और बोले- भाई लहणा! कोई मन में आस है तो बोल।

भाई लहणा जी ने कहा- हे दातार! इस कटोरे की तरह मुझे भी आपका इतना प्यार मिले,
कि विकारों से भरा मैं पापी,
आपके अंगीकार हो सकूँ।

श्री गुरु नानक देव जी बोले- भाई लहणा! आप मुझे अतिप्रिय हो।
आप अपने आपको पाप और विकार से भरा कहते हो,
आप तो सेवा और सिमरन की ऐसी गंगा हो,
जिसमें पाप और विकार कभी ठहर ही नहीं सकते।

ऐसे दीन दयाल सत्गुरु, सेवा और सिमरन के सोमे श्री गुरु नानक देव जी के दूसरे अवतार धन्न गुरु अंगद देव जी महाराज जी (भाई लहणा जी) हुए।

------ ये है अपने गुरु/सत्गुरु के प्रति प्यार ------
अगर हमको हमारे गुरु पर पूरा भरोसा है,
तो फिर गुरु हमें कभी भी अकेला नहीं छोड़ते हैं।
हमें सिर्फ और सिर्फ उनके बताए हुए मार्ग पर और उनके कहे हुए शब्दों पर चलना चाहिए।

🙏🏼🙏🏼जय गुरु जी 🙏🏼🙏🏼

Precious Land Vrindavan

*"बृज की माटी"*
********************
देवताओं ने व्रज में कोई ग्वाला कोई गोपी कोई गाय, कोई मोर तो कोई तोते के रूप में जन्म लिया।कुछ देवता और ऋषि रह गए थे।वे सभी ब्रह्माजी के पास आये और कहने लगे कि ब्रह्मदेव आप ने हमें व्रज में क्यों नही भेजा? आप कुछ भी करिए किसी भी रूप में भेजिए।ब्रह्मा जी बोले व्रज में जितने लोगों को भेजना संभव था उतने लोगों को भेज दिया है अब व्रज में कोई भी जगह खाली नहीं बची है। देवताओं ने अनुरोध किया प्रभु आप हमें ग्वाले ही बना दें ब्रह्माजी बोले जितने लोगों को बनाना था उतनों को बना दिया और ग्वाले नहीं बना सकते।देवता बोले प्रभु ग्वाले नहीं बना सकते तो हमे बरसाने को गोपियां ही बना दें ब्रह्माजी बोले अब गोपियों की भी जगह खाली नही है।देवता बोले गोपी नहीं बना सकते, ग्वाला नहीं बना सकते तो आप हमें गायें ही बना दें। ब्रह्माजी बोले गाएं भी खूब बना दी हैं।अकेले नन्द बाबा के पास नौ लाख गाएं हैं।अब और गाएं नहीं बना सकते।
देवता बोले प्रभु चलो मोर ही बना दें।नाच-नाच कर कान्हा को रिझाया करेंगे।ब्रह्माजी बोले मोर भी खूब बना दिए। इतने मोर बना दिए की व्रज में समा नहीं पा रहे।उनके लिए अलग से मोर कुटी बनानी पड़ी।

देवता बोले तो कोई तोता, मैना, चिड़िया, कबूतर, बंदर  कुछ भी बना दीजिए। ब्रह्माजी बोले वो भी खूब बना दिए, पुरे पेड़ भरे हुए हैं पक्षियों से।देवता बोले तो कोई पेड़-पौधा,लता-पता ही बना दें।
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ब्रह्मा जी बोले- पेड़-पौधे, लता-पता भी मैंने इतने बना दिए की सूर्यदेव मुझसे रुष्ट है कि उनकी किरने भी बड़ी कठिनाई से ब्रिज की धरती को स्पर्श करती हैं।देवता बोले प्रभु कोई तो जगह दें हमें भी व्रज में भेजिए।ब्रह्मा जी बोले-कोई जगह खाली नही है।तब देवताओ ने हाथ जोड़ कर ब्रह्माजी से कहा प्रभु अगर हम कोई जगह अपने लिए ढूंढ़ के ले आएं तो आप हम को व्रज में भेज देंगे।ब्रह्मा जी बोले हाँ तुम अपने लिए कोई जगह ढूंढ़ के ले आओगे तो मैं तुम्हें व्रज में भेज दूंगा। देवताओ ने कहा धुल और रेत कणो कि तो कोई सीमा नहीं हो सकती और कुछ नहीं तो बालकृष्ण लल्ला के चरण पड़ने से ही हमारा कल्याण हो जाएगा हम को व्रज में धूल रेत ही बना दे।ब्रह्मा जी ने उनकी बात मान ली।
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इसलिए जब भी व्रज जाये तो धूल और रेत से क्षमा मांग कर अपना पैर धरती पर रखे, क्योंकि व्रज की रेत भी सामान्य नही है, वो ही तो रज देवी - देवता एवं समस्त ऋषि-मुनि हैं।

.       *||जय श्री कृष्ण||*
             ✍☘💕

Power of true Pray

सिमरन की ताकत

एक बार राजा अकबर ने बीरबल से पूछा कि तुम हिंदू लोग दिन में कभी मंदिर जाते हो, कभी पूजा-पाठ करते हो, आखिर भगवान तुम्हें देता क्या है ?

बीरबल ने कहा कि महाराज मुझे कुछ दिन का समय दीजिए   बीरबल एक बूढी भिखारन के पास जाकर कहा कि मैं तुम्हें पैसे भी दूँगा और रोज खाना भी खिलाऊंगा, पर तुम्हें मेरा एक काम करना होगा ।  बुढ़िया ने कहा ठीक है जनाब  बीरबल ने कहा कि आज के बाद अगर कोई तुमसे पूछे कि क्या चाहिए तो कहना अकबर, अगर कोई पूछे किसने दिया तो कहना अकबर शहनशाह ने ।

वह भिखारिन "अकबर" को बिल्कुल नहीं जानती थी, पर वह रोज-रोज हर बात में "अकबर" का नाम लेने लगी ।  कोई पूछता क्या चाहिए तो वह कहती "अकबर",  कोई पूछता किसने दिया, तो कहती "अकबर" मेरे मालिक ने दिया है । धीरे धीरे यह सारी बातें "अकबर" के कानों तक भी पहुँच गई ।  वह खुद भी उस भिखारन के पास गया और पूछा यह सब तुझे किसने दिया है ? तो उसने जवाब दिया, मेरे शहनशाह "अकबर" ने मुझे सब कुछ दिया है, फिर पूछा और क्या चाहिए ? तो बड़े अदब से भिखारन ने कहा, "अकबर" का दीदार, मैं उसकी हर रहमत का शुक्राना अदा करना चाहती हूँ, बस और मुझे कुछ नहीं चाहिए

"अकबर" उसका प्रेम और श्रद्धा देख कर निहाल हो गया और उसे अपने महल में ले आया, भिखारन तो हक्की बक्की रह गई और "अकबर" के पैरों में लेट गई, धन्य है मेरा शहनशाह

अकबर ने उसे बहुत सारा सोना दिया, रहने को घर, सेवा करने वाले नौकर भी दे कर उसे विदा किया । तब बीरबल ने कहा  महाराज यह आपके उस सवाल का जवाब है ।

जब इस भिखारिन ने सिर्फ केवल कुछ दिन  सारा दिन आपका ही नाम लिया तो आपने उसे निहाल कर दिया । इसी तरह जब हम सारा दिन सिर्फ मालिक को ही याद करेंगे तो वह हमें अपनी दया मेहर से निहाल और मालामाल कर देगा जी।
   
इस साखी का सार  यह है कि हमें सारा दिन ही कुल मालिक का ध्यान करना है, आठों पहर उसके नाम का सिमरन करना है, एक बार वह हमारे ध्यान में बस गया तो हमारा काम ही बन जायेगा जी ,जब एक दुनियावी बादशाह के सिमरन से इतना कुछ मिल सकता है तो उस कुल मालिक जिसने ये सभी धरती और बादशह बनाये हैं उसके सिमरन से कितनी रहमत मिलेगी,हमारी क्या अवस्था होगी. सिमरन करने से मन की शांति बनी रहती है और इंसान दुनिया में रहकर भी भगवान से जुड़ा रहता है यह अलग बात है कि हमें दुनिया में रहने के लिए कुछ ऐसी चीजों का सहारा लेना पड़ता है जो हमारे जीवन यापन के लिए जरूरी होती हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपने जीवन में भगवान का महत्व भूल जाएं ईश्वर को याद ना करें ईश्वर की स्मरण करने में जितना हमें समय लगाना चाहिए वह अवश्य ही लगाना चाहिए ताकि हम अपने जीवन के हर पल का आनंद ले सकें