Forgiveness is best

हम परमात्मा की पूजा अर्चना में जितना समय लगाते हैं , 24 घंटों में बस वही पल सार्थक होते हैं। उन क्षणों में हमारी बुद्धि सात्विक रहती है। हम अपनी दुष्प्रवृत्तियों से दूर रहते हैं। शेष सारा समय तो सांसारिकता में ही बीतता है। पूरी दिनचर्या में जाने-अनजाने ही हमसे बहुत सी गलतियां होती रहती हैं। प्रयास तो ऐसा होना चाहिए कि ये त्रुटियां कम से कम हों , लेकिन जो भूलवश हो जाएं , उनके लिए क्षमायाचना करनी जरूरी है। त्रुटियों का प्रायश्चित करने के लिए आवश्यक है कि हम उस परमपिता से क्षमायाचना करें , जिसने इस समूचे संसार की रचना की है। इसी के साथ-साथ यह भी जरूरी है कि हम इस बात का ख्याल रखें कि उन गलतियों की पुनरावृत्ति न हो। इसके लिए हमें अत्यधिक सावधान और सचेष्ट रहना चाहिए। पूजा के प्रारंभ में गणेश की वंदना तथा अंत में आरती , शांति पाठ तथा क्षमायाचना की जाती है। इसके अंतर्गत देव अपराध समापन स्त्रोत का पाठ किया जाता है। श्री दुर्गा सप्तशती आदि ग्रंथों के अंत में यह विस्तार से दिया गया होता है। इसका अर्थ यही है कि हमें मंत्रों तथा पूजन आदि के बारे में ठीक से नहीं पता है , अत: कृपा पूर्वक हमारे अपराध क्षमा करो। अपने प्रभु से क्षमायाचना करने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह भक्त के अंदर याचक होने का भाव भरता है। हमारे दर्प भरे मस्तक को सबसे बड़े दाता के दर पर झुका देता है। हमारे प्राचीन मनीषियों ने हमारे अहंकार को तोड़ने के लिए ही यह उपाय खोजा था कि हम केवल प्रार्थना , उपासना और आराधना ही नहीं , बल्कि साथ में ईश्वर से अपने अपराधों के प्रति क्षमा याचना भी अवश्य करें। अपनी गलती को स्वीकारने और उसके लिए क्षमा मांगने में संकोच न करें। वस्तुत: अहंकार क्षमा का शत्रु है। यदि तनिक सा भी अहंकार हमारे मन के किसी कोने में शेष है , तो हम किसी को क्षमा नहीं कर सकते और ऐसे में क्षमा याचना करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। याद रहे , जो किसी को क्षमा नहीं करता , वह क्षमा याचना करने का भी अधिकारी नहीं हो सकता। इसलिए क्षमायाचना वही कर सकता है , जो सभी को क्षमा करना जानता हो अर्थात क्षमा करना जिसके स्वभाव का अंग हो। इसके लिए विनम्रता और सहनशीलता की आवश्यकता पड़ती है। इसीलिए जैन मत में क्षमा का इतना महत्व है कि इसके लिए विशेष रूप से क्षमावणी दिवस मनाया जाता है। ईश्वर के यहां हमारी क्षमा याचना तभी स्वीकार होती है , जबकि हम खुद दूसरों को क्षमा करते हों और भूल जाते हों। ईश्वर तो बहुत दयावान है। वह हमारी असंख्य त्रुटियों को क्षमा करता है। इसीलिए यदि हम क्षमा करने का दिव्य गुण सीख लेते हैं , तो ईश्वर भी हमें क्षमा करने में उदार हो जाता है। किंतु ध्यान रहे कि गुनाह , गलती तथा भूल में बहुत अंतर है। भूल , असावधानी का परिणाम है। गलती अनजाने में होती है , लेकिन गुनाह जान-बूझकर किया जाता है। परमात्मा से पूजा-अर्चन करते समय हमें इन तीनों के बारे में ही क्षमा याचना अवश्य करनी चाहिए। अन्यथा बुद्धि आत्मनिष्ठ नहीं हो पाती। भ्रांति , जड़ता और अहंकार आदि दोष दूर नहीं होते। परमात्मा की समीपता प्राप्त नहीं होती , अत: परमानंद की अनुभूति होने का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता। परिणामत: सारी आध्यात्मिक यात्रा ही अधूरी रह जाती है। विभिन्न धर्मों में उपासना की पद्धतियां अलग-अलग हैं। इन सबके बावजूद कोई भी , कभी भी , कहीं भी , किसी तरह से भी अपने इष्ट , आराध्य का नाम ले सकता है। उसका ध्यान और सुमिरन कर सकता है , उसमें खो सकता है। परमात्मा सबकी सुनता है , बशर्ते हमारे अंदर पात्रता हो। अपनी पूजा-अर्चना में किसी कमी या भूल-चूक से वह कभी रुष्ट या क्रुद्ध नहीं होता। ये सब बातें तो मानव स्वभाव का हिस्सा हैं। क्षमायाचना करके हम मुक्त हो जाते हैं। प्रतिशोध की ज्वाला जब तक हृदय में शांत न हो जाए , तब तक श्रद्धा और भक्ति के अंकुर नहीं फूटते हैं। असहिष्णुता के बंधन नहीं टूटते हैं। इसलिए भक्त को सर्वप्रथम क्षमाशील तथा क्षमायाची बनना पड़ता है। क्षमाहीन के अपराध कभी क्षम्य नहीं होते। इसलिए अध्यात्म के मार्ग पर चलने वालों को जैसे को तैसा , ईंट का जवाब पत्थर से देने तथा धूल चटाने जैसे कुभावों को अपने हृदय से निकाल देना चाहिए।

Real and practical knowledge

उस पांच सितारा ऑडिटोरियम के बाहर प्रोफेसर साहब की आलीशान कार आकर रुकी,प्रोफेसर बैठने को हुए ही थे कि एक सभ्य सा युगल याचक दृष्टि से उन्हें देखता हुआ पास आया और बोला ," साहब,यहां से मुख्य सड़क तक कोई साधन उपलब्ध नही है।मेहरबानी करके वहां तक लिफ्ट दे दीजिए।आगे हम बस पकड़ लेंगे।" रात के साढ़े ग्यारह बजे प्रोफेसर साहब ने गोद मे बच्चा उठाये इस युगल को देख अपने "तात्कालिक कालजयी" भाषण के प्रभाव में उन्हें अपनी कार में बिठा लिया । ड्राइवर कार दौड़ाने लगा। याचक जैसा वह कपल अब कुटिलतापूर्ण मुस्कुराहट से एक दूसरे की आंखों में देख अपना षड्यंत्र लागू करने लगा । पुरुष ने सीट के पॉकेट मे रखे मूंगफली के पाउच निकालकर खाना शुरू कर दिया प्रोफेसर से बिना पूछे मांगे ।लड़की भी बच्चे को छोड़ कार की तलाशी लेने लगी।एक शानदार ड्रेस दिखी तो उसने झट से उठा ली और अपने पर लगा कर देखने लगी ।प्रोफेसर साहब अब सहन नही कर सकते थे ड्राइवर से बोले गाड़ी रोको ,लेकिन ड्राइवर ने गाड़ी नही रोकी बस एक बार पीछे पलटकर देखा,प्रोफेसर को झटका लगा ,अरे ये कौन है उनके ड्राइवर के वेश में ? वे तीनों वहशियाना तरीके से हंसने लगे। प्रोफेसर साहब को अपने इष्टदेव याद आने लगे ,थोड़ा साहस एकत्रित करके प्रोफेसर साहब ने शक्ति प्रयोग का "अभ्यासहीन " प्रयास करने का विचार किया लेकिन तब तक वह पुरुष अपनी जेब से एक लाइटर जैसा पदार्थ निकाल चुका था और उसका एक बटन दबाते ही 4 इंच का धारदार चाकू बाहर आ चुका था प्रोफेसर साहब की क्रांति समयपूर्व ही गर्भपात को प्राप्त हुई ।प्रोफेसर साहब समझ चुके थे कि आज कोई बड़ी अनहोनी निश्चित है उन्होंने खुद ही अपना पर्स निकालकर सारे पैसे उस व्यक्ति के हाथ में थमा दिये।लेकिन वह व्यक्ति अब उनके आभूषणों की तरफ देखने लगा,दुखी मन से प्रोफेसर साहब ने अपनी अंगूठियां ,ब्रेसलेट और सोने के चेन उतार के उसके हाथ में धर दिए,अब वह व्यक्ति उनके गले में एक और लॉकेट युक्त चैन की तरफ हाथ बढ़ाने लगा । प्रोफेसर साहब याचना पूर्वक बोले - इसे छोड़ दो प्लीज यह मेरे "पुरुखों की निशानी " है जो कुल परंपरा से मुझ तक आई है। इसकी मेरे लिए अत्यंत भावनात्मक महत्ता है । लेकिन वह लुटेरा कहां मानने वाला था उसने आखिर वह निशानी भी उतार ही ली ।बिना प्रोफ़ेसर साहब के पता बताएं वे लोग उनके आलीशान बंगले के बाहर तक पहुंच गए थे।युवक बोला ," लो आ गया घर ,ऐसे ढेर सूखे मेवे,कपड़े , पैसा और प्रोफेसर  साहब की ल..। उसकी आँखों मे आई धूर्ततापूर्ण बेशर्म चमक ने शब्द के अधूरेपन को पूर्णता दे दी ।प्रोफेसर साहब अब पूरे परिवार की सुरक्षा एवं घर पर पड़े अथाह धन-धान्य को लेकर भी चिंतित हो गये उनका रक्तचाप उछाले मारने लगा लेकिन करें भी तो क्या ?लगे गिड़गिड़ाने ," भैया मैंने आपको विपत्ति में देखकर शरण दी और आप मेरा ही इस तरह शोषण कर रहे हैं यह अनुचित है।ईश्वर का भय मानिए यह निर्दयता की पराकाष्ठा है ।अब तो छोड़ दीजिए मुझे भगवान के लिए ।प्रोफेसर फूट फूट कर रोने लगे ।।वे पति पत्नी अपना बच्चा लेकर कार से उतर गये  और वह ड्राइवर भी,उनके द्वारा लिया गया सारा सामान उन्होंने वापस प्रोफेसर साहब के हाथ में पकड़ाया और  बोले " क्षमा कीजिएगा सर ! रोहिंग्या मुसलमानों के विषय मे शरणागत वत्सलता पर आज आपके द्वारा उस ऑडिटोरियम मे  दिए गए "अति भावुक व्याख्यान" का तर्कसंगत शास्त्रीय निराकरण करने की योग्यता हममें नहीं थी अतः हमें यह स्वांग रचना पड़ा । "आप जरा खुद को भारतवर्ष और हमें रोहिंग्या समझ कर इस पूरी घटना पर विचार कीजिए और सोचिये की  आपको अब क्या करना चाहिए इस विषय पर। वो मूंगफली नही इस देश का अथाह प्राकृतिक संसाधन है जिसकी रक्षार्थ यहां के सैनिक अपना लहू बहाकर करते है सर ,मुफ्त नही है यह ।
वो आपकी बेटी या बेटे की ड्रेस मात्र कपड़ा नही है इस देश के नागरिकों के स्वप्न है भविष्य के जिसके लिए यंहा के युवा परिश्रम का पुरुषार्थ करते है ,मुफ्त नही है यह ।आपकी बेटी या पत्नी मात्र नारी नही है देश की अस्मिता है सर जिसे हमारे पुरुखों ने खून के सागर बहा के सुरक्षित रखा है,खैरात में बांटने के लिए नही है यह ।
आपका ये पर्स अर्थव्यवस्था है सर इस देश की जिसे करोड़ो लोग अपने पसीने से सींचते है।मुफ्त नही है ये। और आपके पुरुखों की निशानी यह चैन मात्र सोने का टुकड़ा नही है सर, अस्तित्व है हमारा, इतिहास है इस महान राष्ट्र का जिसे असंख्य योद्धाओ ने मृत्यु की बलिवेदी पर ढेर लगाकर जीवित रखा है। मुफ्त तो छोड़िए इसे किसी ग्रह पर कोई वैज्ञानिक भी उत्पन्न नही कर सकते । कुछ विचार कीजिये सर ! कौन है जो खून चूसने वाली जोंक को अपने शरीर पर रहने की अनुमति देता है ।एक बुद्धिहीन चौपाया भी तत्काल उसे पेड़ के तने से रगड़ कर उससे मुक्ति पा लेता है ।
उस युवक ने वह लाइटर जैसा रामपुरी चाकू  प्रोफेसर साहब के हाथ में देते हुए कहा यह मेरी प्यारी बहन जो आपकी पुत्री है उसे दे दीजिएगा सर क्योंकि अगर आप जैसे लोग लुटेरों को सपोर्ट देकर इस देश में बसाते रहे तो किसी न किसी दिन ऐसी ही किसी कार में आपकी बेटी को इसकी आवश्यकता जरूर पड़ेगी।
सर ज्ञान के विषय मे तो हम आपको क्या समझा सकते हैं लेकिन एक कहानी जरूर सुनिए ,
"लाक्षाग्रह के बाद बच निकले पांडव एकचक्रा नगरी में गए थे तब वहा कोई सराय वगैरह तो थी नहीं तो वे लोग एक ब्राह्मणि के घर पहुंचे और उन्हें शरण देने के लिए याचना की ।शरणागत धर्म के चलते हैं उस ब्राह्मणि ने उन्हें  शरण दी ,शीघ्र ही उन्हें (पांडवो) को पता चला कि यहां एक बकासुर नामक राक्षस प्रत्येक पक्षांत पर  एक व्यक्ति को बैलगाड़ी भरकर भोजन के साथ खा जाता है और इस बार उसी ब्राह्मणी के  इकलौते पुत्र की बारी थी , उस ब्राह्मणि के शरणागत धर्म के निष्काम पालन से प्रसन्न पांडवों ने धर्म की रक्षा के लिए , निर्बलों की सहायता के लिए और अपने शरण प्रदाता के ऋण से हल्के होने के लिए स्वयं भीम को उस ब्राह्मण के स्थान पर भेजा । आगे सभी को पता ही है की भीम ने उस राक्षस कोे किस तरह पटक-पटक कर धोया था लेकिन यह कहानी हमें सिखाती है की शरण किसे दी जाती है ?"जो आपके आपत्तिकाल मे आपके बेटे के बदले अपने बेटे को मृत्यु के सम्मुख प्रस्तुत कर सके वही शरण का सच्चा अधिकारी है । "उसी के लिए आप अपने संसाधन अपना हित अपना सर्वस्व त्याग करके उसे अपने भाई के समान शरण देते हैं और ऐसे कई उदाहरण इतिहास में उपलब्ध है ।
प्रोफेसर साहब !  ज्ञान वह नहीं है जो किताबें पढ़कर आता है , सद्ज्ञान वह है जो ऐतिहासिक घटनाएं सबक के रूप में हमें सीखाती हैं और वही वरेण्य है । वरना कई  पढ़े-लिखे महामूर्धन्य लोगों के मूर्खतापूर्ण निर्णयो का फल यह पुण्यभूमि आज भी भुगत ही रही है। आशा है आप हमारी इस धृष्टता को क्षमा करके हमारे संदेश को समझ सकेंगे । प्रोफेसर साहब एक दीर्घनिश्वास के साथ उन्हें जाते हुए देख रहे थे। आज वे ज्ञान का एक विशिष्ट प्रकाश अपने अंदर स्पष्ट देख पा रहे थे ।
जय सनातन।।
।।नीतिवान लभते  सुखं ।।

Mother is next to God

दस बारह साल का लड़का भूख प्यास से व्याकुल हो के सड़को पर घूमते हुये,घर घर जाकर काम मांगता हैं फटे,पुराने कपड़े, पैरों में चप्पल नही,गाल पिचके घर घर जाकर कहता हैं बाबूजी,मालकिन कोई काम मिलेगा,लोग उसे कहते है छोटे बच्चों को काम पर रख कर हमें मुसीबत मोल नही लेनी, तो कोई उसे धक्के मार कर भागा देते हैं थक हारकर वहाँ के पेड़ के किनारें, बैठ जाता हैं, उसे जोरो की प्यास लगती हैं सामने ही एक घर के बाहर नल लगा रहता हैं, वो उठता हैं और पानी पीने लगता हैं, अंदर से एक महिला निकलती हैं, लड़का डर जाता हैं और कहता हैं मालकिन हम बस पानी पी रहें थे, हमने कुछ नही किया, उस औरत को उस पर तरस आ जाता हैं और पूछती हैं तुम कौन हो, यहाँ क्या कर रहें, लड़का कहता हैं मालकिन मैं काम की तलाश पर आया हूं पर मुझे कोई काम नही दे रहा, औरत कहती हैं तुम्हें भूख लगी हैं मैं खाना दे दूं?? लड़का कहता हैं मालकिन, हो सके तो हमें काम दे दिजिए, हम घर के सारे काम कर लेंगे, आपको शिकायत का कोई मौका नही देंगे।औरत भली थी, उसने उसको काम पर रख लिया, क्यूकि औरत का पति बाहर रहता था काम के सिलसिलें में, और उसका एक लड़का था, जो उस लड़के से तीन साल बड़ा था।
लड़का रोज काम पर जाता, और दिल लगाकर काम करता, वो महिला रोज अपने बच्चें से कभी खाने के पीछे, कभी कपड़े,कभी सोने,कभी किताबे,कभी पेन परेशान रहती क्यूकि उसका बच्चा अपनी माँ की बात को अनसुना कर देता, माँ रोज उस पर चिल्लाती लड़का उस पर ध्यान नही देता ।महिला अपने घर पर काम करने वालें लड़के को भी कपड़ा देती, खाना देती, लड़का जी मालकिन कह कर उनकी सारी बात मानता, उसके कहने से ही पहले, जैसे खाना खा के बर्तन साफ रखना, टेबल कुर्सी साफ रखना, हर चीज जो महिला अपने बच्चें को सीखना चाहती थी, वहाँ वो करता
एक दिन उस महिला के बच्चें ने अपनी टी शर्ट पर खाने की चीज गिरा दी, जब उसकी माँ ने उससे कुछ कहाँ तो वो उसे उल्टा जवाब देने लगा, कि आपको क्या करना है मेरी टी शर्ट है मैं जो करूं, बच्चें के इस व्यवहार से महिला दुखी हुई और रोते हुये कहने लगी,
देख वो भी तो बच्चा हैं ना तुझसे छोटा, वो कितना कहना मानता हैं मेरा, कभी शिकायत का मौका नही देता, तेरे पुराने कपड़े तेरे पुराने जुतें, तक कितना संभाल के रखा हैं ।उसकी माँ कितनी खुश होती होगी, जो उसका बच्चा उसकी हर बात मानता हैं, और वो महिला रोते रोते रूम के अंदर चली जाती हैं वो काम करने वाला पास खड़ा सब सुनते रहता हैं, और उस लड़के से कहता हैं। भाईया ,आपको मालकिन का दिल नही दुखाना चाहिए, आपको उनकी हर बात माननी चाहिए । वो लड़का गुस्सें से "तु ज्यादा हीरो मत बन तेरी माँ तो तुझसे खुश है और मेरी माँ भी, मेरी माँ तेरी बहुत तारीफ करती हैं तो तु मुझे ज्ञान मत दें।लड़के की ऑख में ऑसू आ गयें और उसने कहा"भाईया मैंने अपनी माँ को कभी देखा ही नही, मेरे पैदा होते ही मेरी माँ चल बसी, उसके बाद मेरे पिताजी भी चल बसें, मैं सबकी माँ देखता था, अपने बच्चों से प्यार करती हुई डांटती हुई, मारती हुई, और फिर प्यार से सर पर हाथ फेरते हुये खाना खिलाती हुई, मैं कितना रोता था, की मेरी माँ क्यूं नही, क्यूं मेरी माँ मुझे डाटती नही प्यार नही करती, क्यूं वो मुझे छोड़ गयी क्यू? फिर मैंने मालकिन की ऑखों में वही ममता आप के लिए देखी।आपसे प्यार करना रूठना मनाना, डाटना गुस्सा करना फिर आपका घंटो खड़े रहकर चौखट पर आपका इंतजार करना।आपको पता हैं भाईया जब आप स्कूल चले जाते हैं तो आपकी माँ,आपकी तस्वीर से बाते करती हैं, आपसे पूछती हैं क्यूं तु मेरी बात नही मानता क्यूं तु मुझे परेशान करता हैं, क्यूं टाइम पर खाना नही खाता, फिर आपके फेंके सारे कपड़े खुद अपने हाथों से प्यार से जमाती हैं, मुझे ये कहकर छूने नही देती, की मुझे अपने बच्चे के कपड़े खुद संभाल कर रखना बहुत पसंद हैं ।
भाईया सब की माँ नही होती,पर जिसकी होती हैं, उसको कद्र नही होती। भाईया मैं भले स्कूल नही गया
पर इतना पता हैं, माँ अपने बच्चों की भलाई, उनके भविष्य के लिये उन्हें डाटती हैं पर कहते हैं ना
मैं मालकिन की नजरों में हीरो बनाना चाहता हूं।नही भाईया।जब मालकिन प्यार से मुझे आपके पुराने कपड़े और जुते देती तो मुझे ऐसा लगता हैं मेरी माँ मुझे, इंसान बनना सीखा रही हैं, मैं इसलिए उनकी दी हर चीज को संभाल के रखता हूं,। आपको पता हैं जब मैं भूखा था, कोई काम नही था मेरे पास तो मालकिन ने मेरी ऑखें पढ़ी मेरी भूख देखी,और मुझे सहारा दिया, वो बहुत अच्छी है भाईया भगवान करें सबको ऐसी माँ मिले।
क्यूकि भाईया मेरी माँ तो इस दुनिया में नही हैं।पर माँ जैसे ही कोई मेरा ख्याल रखती हैं इसलिए मैं उनकी हर बात मानता हूं, अपनी माँ को तो नही देख पाया पर, मालकिन के रूप में माँ की ममता देख ली मैंनें ।
पास खड़ी ही उसकी मालकिन सब कुछ सुनती रहती हैं, पर उसकी हिम्मत नही होती, की उस बच्चें के सामने चली जाए,वो गरीब नौकर ऑसू पोछते हुये काम पर लग जाता हैं,और मालकिन का बच्चा अपनी माँ के गले लग जाता हैं।और वो महिला,अपने बच्चें को गले लगाए ये सोचती हैं, वो कौन सी माँ थी। जो इस बच्चें को जन्म दिया ।ईश्वर को किसी ने नही देखा।पर ईश्वर ने भी माँ को देखा हैं ।

Genorosity in behavior

एक अति सुन्दर महिला ने विमान में प्रवेश किया और अपनी सीट की तलाश में नजरें घुमाईं। उसने देखा कि उसकी सीट एक ऐसे व्यक्ति के बगल में है। जिसके दोनों हाथ नहीं है। महिला को उस अपाहिज व्यक्ति के पास बैठने में झिझक हुई।
उस 'सुंदर' महिला ने एयरहोस्टेस से बोला "मै इस सीट पर सुविधापूर्वक यात्रा नहीं कर पाऊँगी। क्योंकि साथ की सीट पर जो व्यक्ति बैठा हुआ है उसके दोनों हाथ नहीं हैं।" उस सुन्दर महिला ने एयरहोस्टेस से सीट बदलने हेतु आग्रह किया। असहज हुई एयरहोस्टेस ने पूछा, "मैम क्या मुझे कारण बता सकती है..?"
'सुंदर' महिला ने जवाब दिया "मैं ऐसे लोगों को पसंद नहीं करती। मैं ऐसे व्यक्ति के पास बैठकर यात्रा नहीं कर पाउंगी।"दिखने में पढी लिखी और विनम्र प्रतीत होने वाली महिला की यह बात सुनकर एयरहोस्टेस अचंभित हो गई। महिला ने एक बार फिर एयरहोस्टेस से जोर देकर कहा कि "मैं उस सीट पर नहीं बैठ सकती। अतः मुझे कोई दूसरी सीट दे दी जाए।"एयरहोस्टेस ने खाली सीट की तलाश में चारों ओर नजर घुमाई, पर कोई भी सीट खाली नहीं दिखी। एयरहोस्टेस ने महिला से कहा कि "मैडम इस इकोनोमी क्लास में कोई सीट खाली नहीं है, किन्तु यात्रियों की सुविधा का ध्यान रखना हमारा दायित्व है। अतः मैं विमान के कप्तान से बात करती हूँ। कृपया तब तक थोडा धैर्य रखें।" ऐसा कहकर होस्टेस कप्तान से बात करने चली गई।
कुछ समय बाद लोटने के बाद उसने महिला को बताया, "मैडम! आपको जो असुविधा हुई, उसके लिए बहुत खेद है | इस पूरे विमान में, केवल एक सीट खाली है और वह प्रथम श्रेणी में है। मैंने हमारी टीम से बात की और हमने एक असाधारण निर्णय लिया। एक यात्री को इकोनॉमी क्लास से प्रथम श्रेणी में भेजने का कार्य हमारी कंपनी के इतिहास में पहली बार हो रहा है।"
'सुंदर' महिला अत्यंत प्रसन्न हो गई, किन्तु इसके पहले कि वह अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती और एक शब्द भी बोल पाती... एयरहोस्टेस उस अपाहिज और दोनों हाथ विहीन व्यक्ति की ओर बढ़ गई और विनम्रता पूर्वक उनसे पूछा "सर, क्या आप प्रथम श्रेणी में जा सकेंगे..? क्योंकि हम नहीं चाहते कि आप एक अशिष्ट यात्री के साथ यात्रा कर के परेशान हों।
यह बात सुनकर सभी यात्रियों ने ताली बजाकर इस निर्णय का स्वागत किया। वह अति सुन्दर दिखने वाली महिला तो अब शर्म से नजरें ही नहीं उठा पा रही थी।
तब उस अपाहिज व्यक्ति ने खड़े होकर कहा, "मैं एक भूतपूर्व सैनिक हूँ। और मैंने एक ऑपरेशन के दौरान कश्मीर सीमा पर हुए बम विस्फोट में अपने दोनों हाथ खोये थे। सबसे पहले, जब मैंने इन देवी जी की चर्चा सुनी, तब मैं सोच रहा था। की मैंने भी किन लोगों की सुरक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डाली और अपने हाथ खोये..? लेकिन जब आप सभी की प्रतिक्रिया देखी तो अब अपने आप पर गर्व महसूस हो रहा है कि मैंने अपने देश और देशवासियों की खातिर अपने दोनों हाथ खोये।"और इतना कह कर, वह प्रथम श्रेणी में चले गए।'सुंदर' महिला पूरी तरह से शर्मिंदा होकर सर झुकाए सीट पर बैठ गई।अगर विचारों में उदारता नहीं है तो ऐसी सुंदरता का कोई मूल्य नहीं है।

Good deeds and bad deeds

एक चित्रकार था, जो अद्धभुत चित्र बनाता था।
लोग उसकी चित्रकारी की काफी तारीफ़ करते थे।
एक दिन कृष्ण मंदिर के भक्तों ने उनसे कृष्ण और कंस का एक चित्र बनाने की इच्छा प्रगट की।
चित्रकार इसके लिये तैयार हो गया आखिर भगवान् का काम था, पर उसने कुछ शर्ते रखी। उसने कहा मुझे योग्य पात्र चाहिए, अगर वे मिल जाए तो में आसानी से चित्र बना दूंगा। कृष्ण के चित्र लिए एक योग्य नटखट बालक और कंस के लिए एक क्रूर भाव वाला व्यक्ति लाकर दे तब मैं चित्र बनाकर दूंगा कृष्ण मंदिर के भक्त एक बालक ले आये, बालक सुन्दर था।चित्रकार ने उसे पसंद किया और उस बालक को सामने रख बालकृष्ण का एक सुंदर चित्र बनाया।अब बारी कंस की थी पर क्रूर भाव वाले व्यक्ति को ढूंढना थोडा मुस्किल था।
जो व्यक्ति कृष्ण मंदिर वालो को पसंद आता वो चित्रकार को पसंद नहीं आता उसे वो भाव मिल नहीं रहे
थे... वक्त गुजरता गया।आखिरकार थक-हार कर सालों बाद वो अब जेल में चित्रकार को ले गए, जहां उम्रकैद काट रहे अपराधी थे। उन अपराधीयों में से एक को चित्रकार ने पसंद किया और उसे सामने रखकर उसने कंस का एक चित्र बनाया। कृष्ण और कंस की वो तस्वीर आज सालों के बाद पूर्ण हुई।कृष्ण मंदिर के भक्त वो तस्वीरे देखकर मंत्रमुग्ध हो गए। उस अपराधी ने भी वह तस्वीरे देखने की इच्छा व्यक्त की। अपराधी ने जब वो तस्वीरे देखी तो वो फुट-फुटकर रोने लगा।
सभी ये देख अचंभित हो गए। चित्रकार ने उससे इसका कारण बड़े प्यार से पूछा।तब वह अपराधी बोला "शायद आपने मुझे पहचाना नहीं, मैं वो ही बच्चा हुँ जिसे सालों पहले आपने बालकृष्ण के चित्र के लिए पसंद किया था।
मेरे कुकर्मो से आज में कंस बन गया, इस तस्वीर में मैं ही कृष्ण मैं ही कंस हुँ।हमारे कर्म ही हमे अच्छाऔर बुरा इंसान बनाते है