Effect of Sainthood

एक चोर राजमहल में चोरी करने गया, उसने राजा-रानी की बातें सुनी। राजा रानी से कह रहे थे कि गंगा तट पर बहुत साधु ठहरे हैं, उनमें से किसी एक को चुनकर अपनी कन्या का विवाह कर देंगें। यह सुनकर चोर साधु का रुप धारण कर गंगा तट पर जा बैठा, दूसरे दिन जब राजा के अधिकरी एक-एक करके सभी साधुओं से विनती करने लगे तब सभी ने विवाह करना अस्वीकार किया। जब चोर के पास आकर अधिकारियों ने निवेदन किया तब उसने हां ना कुछ भी नहीं कहा। राजा के पास जाकर अधिकारियों ने कहा कि सभी ने मना किया परंतु एक साधु लगता है, मान जाएंगे। राजा स्वयं जाकर साधुवेषधारी चोर के पास हाथ जोडकर खडे हो गये एवं विनती करने लगे, चोर के मन में विचार आया कि मात्र साधु का वेष धारण करने से राजा मेंरे सामने हाथ जोडकर खडा है तो यदि मैं सचमुच साधु बन गया तो संसार में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं, जो मेरे लिए अप्राप्त होगी। उसने विवाह के प्रस्ताव को अमान्य कर दिया एवं सच्चे अर्थ में साधु बन गया, उसने कभी भी विवाह न
हीं किया एवं साधना कर संतपद प्राप्त किया, मात्र कुछ समय के लिए साधुओं के जमावडे में बैठने का प्रभाव इतना हो सकता है तो सत्संग का प्रभाव कितना होगा
जय गुरू जी
साधु बनने का मतलब दुनिया से वैराग्य नहीं होता बल्कि दुनिया में रहकर ईश्वर के प्रति समर्पण भाव की भावना होना जरूरी है। आजकल साधु केवल इसलिए बनना चाहते हैं कि उनको कोई काम ना करना पड़े या दुनिया के साथ छल कपट करके अपने लिए दौलत समेट ले।