incarnation of Lord Krishna

श्री कृष्ण लीला सम्पूर्ण क्रमश
हे केशव -- अंधकार को दूर करने और ज्ञान प्राप्त करने का कोई सुगम साधन बताओ।
श्रद्धा - ज्ञान प्राप्त करने के लिए ,केवल साधन है श्रद्धा।
 श्रद्धा के बीज से ही विश्वास का अंकुर फूटता है और आस्था का पौधा लहराने लगता है फिर इसी पौधे पर ज्ञान के फूल खिलते हैं।
श्रद्धा बिनु विनय और विनम्रता न आए पार्थ, श्रद्धा विहीन प्राणी अहम् लिए चलता।
श्रद्धा के गर्भ से ही लेता विश्वास जन्म, विश्वास से ही हृदय तर्क जाल से निकलता।।
श्रद्धा से निष्ठा और निष्ठा से एक निष्ठ, एक निष्ठ हुए बिना काम नहीं चलता।
श्रद्धा बिनु प्रेम नही भक्ति नहीं,  प्रेम बिनु श्रद्धा ही दिलाए ईश  प्राप्ति में सफलता। ।
हे माधव--  कहते हैं,  मनुष्य अंतिम सांस तक माया मोह में पड़ा रहता है परंतु तुम्हीं ने इस माया मय सृष्टि की रचना करके और दूसरी ओर मनुष्य को चंचल मन प्रदान करके दोनों को एक दूसरे में उलझा दिया है।
क्षमा करना--  तुमने जाल बिछाकर शिकारी की भाति जाल में फंसे मनुष्य के हाथ पैर  बांधे छठ पटाने का तमाशा देखते रहते हो।
नहीं अर्जुन--  मैं तमाशा नहीं देखता मैं अपनी माया की लीला देखता हूं।
फिर भी निहारते रहते हो सहायता नहीं करते कि बेचारा प्राणी इधर उधर भटक रहा है, रास्ता भूल पड़ा है, आपके मन में मनुष्य की सहायता करने का विचार कभी नहीं आता। आकर उसका हाथ थाम लो। मैं देख रहा हूं तुमने जो कर्म का विधान बना दिया है और इस जन्म मरण का चक्कर बना दिया है, इस चक्रव्यूह में उसे फंसा दिया है , यह तो कोई बात नहीं हुई। कोई सहायता नहीं हुई।
पार्थ--  में सहायता अवश्य करता हूं अपने भक्तों को मैं कभी भी बेसहारा नहीं छोड़ता, परंतु मनुष्य मेरी ओर देखें, सहायता के लिए मेरी ओर बढ़े, तो मैं सहायता करूं न
परंतु मेरी ओर बढ़ने के बजाय अपने अहंकार में डूबा रहता है, अपने बाहुबल के घमंड में पड़ा रहता है कि संसार में उस से बढ़कर कोई नहीं। वह  केवल अपने बुद्धि और बल पर ही भरोसा करता है,  अपने बाहुबल पर उसे अपने परमात्मा से भी अधिक विश्वास होता है।
रास्ते में भटके हुए मनुष्य की सहायता के लिए आखिर तुम उससे क्या चाहते हो ? क्या तुम्हे सोने चांदी के चढ़ावे चाहिए।
 मैं मनुष्य से एक श्रद्धा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं चाहता। हे अर्जुन--  इतना भी ना हो सके तो श्रद्धा या भक्ति का एक आंसू ही सही मैं उसे भी कबूल कर लेता हूं , श्रद्धा में डूबे हुए आंसू से मैं प्रसन्न हो जाता हूं।
जब तक है इन पर अहम का पर्दा, तब तक मैं देता ना दिखाई।
जिसके मन से मैं नहीं निकली, उसने मेरी कृपा नहीं पाई।
 मुझे समर्पण के भाव प्यारे, उसे मिलूं जो मन से पुकारे।
 हे नाथ नारायण वासुदेवा, हे नाथ नारायण वासुदेवा।।
अर्थात भक्ति का स्थान इतना ऊंचा है।
हां अर्जुन--  एक केवल एक शर्त है, पूर्ण श्रद्धा और पूर्ण भक्ति से अपने आपको अपने सारे कर्मों को मेरे प्रति समर्पित कर दें बस।
वाह प्रभु वाह
क्रमश  हे प्रभु आपकी जय हो जय हो  कृपा करो प्रभु कृपा करो।

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