इसीलिए कहा गया है कि अंतर्मन ही भगवान की सबसे बड़ी अदालत होता है जो हमारे को सही और गलत का निर्णय देने में सक्षम है परंतु इंसान अपनी इस अंतर्मन भावना को व्यक्त करने से डरता है या उसको मानने से इनकार करता है जिसके कारण की समस्या विकट रूप धारण कर लेती है चाहे समाज में उसका रुतबा कितना भी बड़ा क्यों ना हो जाए परंतु उसका अंतर्मन यह जानता है कि मैं गलत कार्यों की वजह से ही ऊपर उठाया है जो कि बिना झूठ बोले संभव ही नहीं था अपनी उन्नति तरक्की और दूसरों से आगे निकलने की भावना ही उसको अंतर्मन की आवाज दबाने की शक्ति प्रदान करती है यदि व्यक्ति अपने अंतर्मन से डरे तो शायद उसका ज्यादा अच्छा प्रभाव पड़े लेकिन व्यक्ति अंतर्मन से डरना छोड़ देता है जिसके कारण यह सारी विकृतियां बड़ा रूप धारण कर लेती है हर इंसान अपने आप को गलतियों का पुतला बनाता चला जाता है और उसमें सुधार की कोई गुंजाइश ही नहीं छोड़ता है
Millions of millions years have passed and human civilization comes into existence. Existence of God is eternal truth
हमारा अंतर्मन सबसे बड़ी अदालत है
जब भी हम किसी क्रियाकलाप को करते हैं तो हमारे किए गए क्रियाकलाप में सच या झूठ जरूर शामिल होता है यदि हम किसी गलत कार्य में संलग्न है तो हमारे अंतर्मन को पता होता है कि हम यह गलत कर रहे हैं परंतु हमारा दिल दिमाग अंतर मन की आवाज को नहीं सुनता है और हमारे दिमाग दिल और पूरी भावनाओं पर हावी होता रहता है जिसके कारण हम अंतर मन की आवाज को दबाते रहते हैं जो कि इंसान की पतन का कारण बनता है

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