हमारा अंतर्मन सबसे बड़ी अदालत है

जब भी हम किसी क्रियाकलाप को करते हैं तो हमारे किए गए क्रियाकलाप में सच या झूठ जरूर शामिल होता है यदि हम किसी गलत कार्य में संलग्न है तो हमारे अंतर्मन को पता होता है कि हम यह गलत कर रहे हैं परंतु हमारा दिल दिमाग अंतर मन की आवाज को नहीं सुनता है और हमारे दिमाग दिल और पूरी भावनाओं पर हावी होता रहता है जिसके कारण हम अंतर मन की आवाज को दबाते रहते हैं जो कि इंसान की पतन का कारण बनता है
इसीलिए कहा गया है कि अंतर्मन ही भगवान की सबसे बड़ी अदालत होता है जो हमारे को सही और गलत का निर्णय देने में सक्षम है परंतु इंसान अपनी इस अंतर्मन भावना को व्यक्त करने से डरता है या उसको मानने से इनकार करता है जिसके कारण की समस्या विकट रूप धारण कर लेती है चाहे समाज में उसका रुतबा कितना भी बड़ा क्यों ना हो जाए परंतु उसका अंतर्मन यह जानता है कि मैं गलत कार्यों की वजह से ही ऊपर उठाया है जो कि बिना झूठ बोले संभव ही नहीं था अपनी उन्नति तरक्की और दूसरों से आगे निकलने की भावना ही उसको अंतर्मन की आवाज दबाने की शक्ति प्रदान करती है यदि व्यक्ति अपने अंतर्मन से डरे तो शायद उसका ज्यादा अच्छा प्रभाव पड़े लेकिन व्यक्ति अंतर्मन से डरना छोड़ देता है जिसके कारण यह सारी विकृतियां बड़ा रूप धारण कर लेती है हर इंसान अपने आप को गलतियों का पुतला बनाता चला जाता है और उसमें सुधार की कोई गुंजाइश ही नहीं छोड़ता है

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