MAHA SHIVPURAN

गुरुजी ने शिवपुराण क्यूँ अनिवार्य बताया
1- जब हम पहली बार भगवत शिवपुराण पड़ते हैं। तो हम एक अन्धे व्यक्ति के रूप में पड़ते हैं और बस इतनाही समझ में आता है कि कौन किसके पिता, कौन किसकी बहन, कौन किसका भाई। बस इससे ज्यादा कुछसमझ नहीं आता।
2- जब हम दूसरी बार शिवपुराणपड़ते हैं, तो हमारे मन में सवाल जागते हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों किया या उन्होंने वैसा क्यों किया ?
3- जब हम तीसरी बार शिवपुराण को पड़ेगें, तो हमे धीरे-धीरे उसके मतलब समझ में आने शुरू हो जायेंगे। लेकिन हर एक को वो मतलब अपने तरीके से हीसमझमें आयेंगे।
4- जब चोथी बार हम शिवपुराण को पड़ेगे, तो हर एक पात्र की जो भावनायें हैं, इमोशन... उसको आप समझ पायेगें कि किसके मन में क्या चल रहा है। जैसे विष्णु जी  के मन में क्या चल रहा है या बरमहा जी  केमन में क्या चल रहा है ? इसको हम समझ पाएंगे।
5- जब पाँचवी बार हम शिवपुराण को पड़ेगे तो पूरा कैलाश हमारे मन में खड़ा होता है, तैयार होता है,हमारे मन में अलग-अलग प्रकार की कल्पनायें होती हैं।
6- जब हम छठी बार शिवपुराण को पढ़ते हैं, तब हमें ऐसा नही लगता की हम पढ़ रहें हैं... हमे ऐसा ही लगता है कि कोई हमें ये बता रहा है।
7- जब सातवी बार शिवपुराण को पढ़ेंगे, तब हम नंदी बन जाते हैं और ऐसा ही लगता है कि सामने वो ही भगवान शिवजी हैं, जो मुझे ये बता रहें हैं।
8- और जब हम आठवी बार शिवपुराणपड़ते हैं, तब यह एहसास होताहै कि शिवजी कहीं बाहर नही हैं, वो तो हमारे अन्दर हैं और हम उनके अन्दर हैं।जब हम आठ बार शिवपुराण पड़ लेगें तब हमें शिवपुराण का महत्व पता चलेगा | कि इस संसार में अलग कुछ है ही नहीं और इस संसार में गुरु ही हमारे मोक्ष का सबसे सरल उपाय है। शिवपुराण में ही मनुष्य के सारे प्रश्नों केउत्तर लिखें हैं। जो प्रश्न मनुष्य ईश्वर से पूछना चाहता है। वोसब शिवपुराण में सहज ढंग से लिखें हैं। मनुष्य की सारी परेशानियों के उत्तर लिखें हैं, अमृत है।

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